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NCERT Solutions For Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles And Processes Of Isolation Of Elements In Hindi Mediem in Hindi - 2025-26

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Step-by-Step Solutions For Class 12 Chemistry Chapter 6 In Hindi - Free PDF Download

Using the NCERT Solutions Class 12 Chemistry Chapter 6 In Hindi, discover how metals are taken out from their ores, why certain elements are tough to extract, and the science behind purification methods. This chapter makes tricky processes like refining, roasting, and reduction much easier to grasp, especially for students learning in Hindi. If you ever wondered how iron or aluminium gets ready for our daily use, this topic has all the answers!


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Access NCERT Solutions for Class 12 Science Chapter 6 - General Principles and Processes of Isolation of Elements

1. कॉपर का निष्कर्षण हाइड्रोधातुकर्म द्वारा किया जाता है, परन्तु जिंक का नहीं। व्याख्या कीजिए।

उत्तर: कॉपर, जिंक से अधिक कियाशील होता है। कॉपर आयनों के विलयन से  आयनों को \[Zn\] \[{\mathbf{ZnO}}\] के द्वारा आसानी से प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इस प्रकार, कॉपर को हाइड्रोधातुकर्म के द्वारा निष्कर्षित किया जा सकता है। परन्तु, जिंक के ज़्यादा क्रियाशील होने के कारण, आयन युक्त विलयन से आसानी से विस्थापित नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार, कॉपर को हाइड्रोधातु कर्म के द्वारा निष्कर्षित किया जा सकता है। परन्तु, जिंक को अधिक क्रियाशील होने की वजह से  आयन युक्त विलयन से आसानी से विस्थापित नहीं किया जा सकता है।इसकी वजह यह है कि जिंक से अधिक क्रियाशील धातु; जैसे-ऐलुमिनियम, मैग्नीशियम, कैल्सियम आदि जल से क्रिया करती है इसलिए, जिंक को हाइड्रोधातु कर्म के द्वारा निष्कर्षित नहीं किया जा सकता है।

2. फेन प्लवन विधि में अवनमक की क्या भूमिका है?

उत्तर: फेन प्लवन विधि में अवनमक का मुख्य कार्य संकरता के द्वारा अयस्क के अवयवों में से किसी एक को फेन बनाने से रोकना है। जैसे, \[NaCN{\text{ }}\] का प्रयोग अवनमक के रूप में \[PbS{\text{ }}\] से \[ZnS\] अयस्क को पृथक् करने के लिए किया जाता है। यह \[ZnS\]के साथ संकर यौगिक बनाता है तथा इसको फेन बनाने से रोकता है। इस प्रकार केवल \[PbS{\text{ }}\] ही फेन बनाने के लिए उपलब्ध होता है तथा इसे \[ZnS\]से सरलता से पृथक् किया जा सकता है।

3. अपचयन द्वारा ऑक्साइड अयस्कों की अपेक्षा पाइराइट से ताँबे का निष्कर्षण अधिक कठिन क्यों है?

उत्तर: पायराइट अयस्क में, कॉपर  के रूप में विद्यमान रहता है।  के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा से अधिक होती है, जो कि एक ऊष्माशोषी यौगिक है। इसलिए, कार्बन या का प्रयोग  को \[Cu\] धातु में अपचयित करने के लिए नहीं किया जा सकता है। इसके विपरीत   के \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\] का मान \[CO\], से बहुत कम होता है। इसलिए,  को कार्बन के द्वारा \[Cu\] धातु में सरलता से अपचयित किया जा सकता है। यही कारण है कि पायराइट से \[Cu\] का निष्कर्षण इसके ऑक्साइड के अपचयन द्वारा अधिक कठिन है।


4. व्याख्या कीजिए-

1. मण्डल परिष्करण,

उत्तर:  मण्डल परिष्करण – यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है कि अशुद्धियों की विलेयता धातु की ठोस अवस्था की अपेक्षा गलित अवस्था में अधिक होती है। अशुद्ध धातु की छड़ के एक किनारे पर एक वृत्ताकार गतिशील तापक लगा रहता है (चित्र-1)। इसकी सहायता से अशुद्ध धातु को गर्म किया जाता है। तापक जैसे ही आगे की ओर बढ़ता है, गलित से शुद्ध धातु क्रिस्टलित हो जाती है तथा अशुद्धियाँ संलग्न गलितं मण्डल में चली जाती हैं। इस क्रिया को कई बार दोहराया जाता है तथा तापक को एक ही दिशा में बार-बार चलाते हैं। अशुद्धियाँ छड़ के एक किनारे पर एकत्रित हो जाती हैं। इसे काटकर अलग कर लिया जाता है। यह विधि मुख्य रूप से अतिउच्च शुद्धता वाले अर्द्धचालकों जैसे जर्मेनियम, सिलिकन, बोरॉन, गैलियम एवं इण्डियम तथा अन्य अतिशुद्ध धातुओं को प्राप्त करने के लिए बहुत उपयोगी है।

Circle Finishing

2. स्तम्भ वर्णलेखिकी।

उत्तर: स्तम्भ वर्णलेखिकी (Column chromatography) – यह विधि इस सिद्धान्त पर आधारित है। कि अधिशोषक पर मिश्रण के विभिन्न घटकों का अधिशोषण अलग-अलग होता है। मिश्रण को द्रव या गैसीय माध्यम में रखा जाता है जो कि अधिशोषक में से गुजरता है। स्तम्भ में विभिन्न घटक भिन्न-भिन्न स्तरों पर अधिशोषित हो जाते हैं, बाद में अधिशोषित घटक उपयुक्त विलायकों (निक्षालक) द्वारा निक्षालित कर लिए जाते हैं। गतिशील माध्यम की भौतिक अवस्था, अधिशोषक पदार्थ की प्रकृति एवं गतिशील माध्यम के गमन के प्रक्रम पर निर्भर होने के कारण इसे ‘स्तम्भ वर्णलेखिकी‘ नाम दिया गया है। इस प्रकार की एक विधि में काँच की नली में  का एक स्तम्भ बनाया जाता है तथा गतिशील माध्यम जिसमें अवयवों का विलयन उपस्थित होता है, द्रव प्रावस्था में होता है। यह स्तम्भ वर्णलेखिकी का एक उदाहरण है। यह विधि सूक्ष्म मात्रा में पाए जाने वाले तत्वों के शुद्धिकरण और शुद्ध किए जाने वाले तत्व तथा अशुद्धियों के रासायनिक गुणों में अधिक भिन्नता न होने की स्थिति में शुद्धिकरण के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है। स्तम्भ वर्णलेखिकी में प्रयुक्त प्रक्रम को चित्र-2 में दर्शाया गया है।

Column Chromatography

5. \[{\mathbf{673}}{\text{ }}{\mathbf{K}}\] ताप पर \[{\mathbf{C}}\] तथा \[{\mathbf{CO}}\] में से कौन-सा अच्छा अपचायक है?

उत्तर: \[{\mathbf{673}}{\text{ }}{\mathbf{K}}\]  ताप पर \[{\mathbf{C}}\] एवं \[{\mathbf{CO}}\] में से \[{\mathbf{CO}}\] एक अच्छा अपचायक है। इसको निम्न प्रकार समझाया जा सकता है –

Ellingham diagram

एलिंघम चित्र (चित्र 3) में, वक्र लगभग क्षैतिज है, जबकि  वक्र उर्ध्वगामी हैं तथा दोनों वक्र \[{\mathbf{673}}{\text{ }}{\mathbf{K}}\]पर एक-दूसरे को काटते हैं। 

ऊर्जा की दृष्टि से कम सम्भाव्य है क्योंकि इसकी \[\Delta f{G^ - }\]का मान अभिक्रिया \[\Delta f{G^ - }\] की तुलना में कम ऋणात्मक होता है। इसलिए \[673{\text{ }}K\] से नीचे \[{\mathbf{CO}}\] एक अधिक अच्छे अपचायक के रूप में कार्य करता है।

6. कॉपर के विद्युत-अपघटन शोधन में ऐनोड पंक में उपस्थित सामान्य तत्वों के नाम दीजिए। वे वहाँ कैसे उपस्थित होते हैं?

उत्तर: कॉपर के वैद्युत शोधन में ऐनोड मड में उपस्थित सामान्य तत्त्व सेलेनिमय, टेलुरियम, सिल्वर, गोल्ड आदि हैं। ये तत्त्व कॉपर से कम क्रियाशील होते हैं तथा वैद्युत प्रक्रिया में अप्रभावित रहते हैं।

7. आयरन (लोहे) के निष्कर्षण के दौरान वात्या भट्टी के विभिन्न क्षेत्रों में होने वाली अभिक्रियाओं को लिखिए।

उत्तर: आयरन के ऑक्साइड अयस्कों को निस्तापन अथवा भर्जन से सान्द्रित करके, लाइमस्टोन तथा कोक के साथ मिश्रित करके वात्या भट्टी के हॉपर में डाला जाता है। वात्या भट्टी में विभिन्न ताप-परासों में आयरन ऑक्साइड का अपचयन होता है। वात्या भट्टी में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –

\[500{\text{ }}--{\text{ }}800{\text{ }}K\] पर (वात्या भट्टी में निम्न ताप परिसर में)

\[900{\text{ }}--{\text{ }}1500{\text{ }}K\] पर (वात्या भट्टी में उच्च ताप-परिसर में)

चूना पत्थर (लाइमस्टोन) भी \[CaO\] में अपघटित हो जाता है जो अयस्क की सिलिकेट अशुद्धि को धातुमल के रूप में हटा देता है। धातुमल (slag) गलित अवस्था में होता है तथा आयरन से पृथक्कृत हो जाता है।

8. जिंक ब्लेण्ड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली रासायनिक अभिक्रियाओं को लिखिए।

उत्तर: जिंक ब्लेण्ड से जिंक के निष्कर्षण में होने वाली अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं –

  1. सान्द्रण (Concentration) – अयस्क को पीसकर फेन प्लवन प्रक्रम द्वारा इसको सान्द्रण किया जाता है।

  2. भर्जन (Roasting) – सान्द्रित अयस्क का लगभग \[1200{\text{ }}K\] ताप पर वायु की अधिकता में भर्जन किया जाता है जिससे जिंक ऑक्साईड \[\left( {ZnO} \right)\]प्राप्त होता है।

  3. अपचयन (Reduction) – प्राप्त जिंक ऑक्साइड को चूर्णित कोक के साथ मिलाकर एक फायर क्ले रिटॉर्ट में \[1673{\text{ }}K\] तक गर्म किया जाता है, परिणामस्वरूप यह जिंक धातु में अपचयित हो जाता है।

\[ZnO{\text{ }} + {\text{ }}C{\text{ }} \to {\text{ }}\left\{ {{\text{ }}1673K{\text{ }}} \right\}Zn{\text{ }} \downarrow {\text{ }} + {\text{ }}CO{\text{ }} \uparrow \]

\[1673{\text{ }}K\] पर जिंक धातु वाष्पीकृत होकर (क्वथनांक \[1180{\text{ }}K)\]आसवित हो जाती है।

  1. विद्युत-अपघटनी शोधन (Electrolytic refining) – अशुद्ध जिंक ऐनोड बनाता है तथा कैथोड शुद्ध जिंक की शीट से बना होता है। विद्युत-अपघट्य तनु से अम्लीकृत विलयन होता है। विद्युत धारा प्रवाहित करने पर शुद्ध Zn कैथोड पर संगृहीत हो जाता है।

9. कॉपर के धातुकर्म में सिलिका की भूमिका समझाइए।

उत्तर: भर्जन के दौरान कॉपर पाइराइट \[FeO\]  तथा  के मिश्रण में परिवर्तित हो जाता है।

\[FeO\] (क्षारीय) को हटाने के लिए प्रगलन के दौरान एक अम्लीय गालक सिलिका मिलाया जाता है। \[FeO\], से संयोग करके फेरस सिलिकेट धातुमल बनाता है जो गलित अवस्था में प्राप्त मैट पर तैरने लगता है। अत: कॉपर के निष्कर्षण में सिलिका की भूमिका ऑक्साइड को धातुमल के रूप में हटाने की होती है।

10. ‘वर्णलेखिकी पद का क्या अर्थ है?

उत्तर: वर्णलेखिकी (क्रोमैटोग्राफी) ग्रीक भाषा में क्रोमा का अर्थ रंग तथा ग्राफी का अर्थ लिखना होता है। शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम \[1906\] में आईवेट (Iswett) के द्वारा पौधों से रंगीन पदार्थों को पृथक् करने के लिए किया गया था। अब इस शब्द का मूल अर्थ अस्तित्वहीन है क्योंकि आजकल इस तकनीक का प्रयोग व्यापक रूप में पृथक्करण, शोधन तथा रंगीन या रंगहीन मिश्रण के अवयवों के लक्षणीकरण (characterisation) तत्त्वों के निर्धारण में किया जाता है। यह कार्बनिक यौगिक के मिश्रण के अवयवों का दो प्रावस्थाओं के बीच वितरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इन दोनों प्रावस्थाओं में एक स्थिर होती है, जो कि ठोस या द्रव हो सकती है। इसे स्थिर प्रावस्था कहते हैं। दूसरी प्रावस्था को गतिशील प्रावस्था कहते हैं। यह गतिशील प्रकृति की होती है और द्रव या गैस की बनी होती है।

11. वर्णलेखिकी में स्थिर प्रावस्था के चयन में क्या मापदण्ड अपनाए जाते हैं?

उत्तर: स्थिर प्रावस्था इस प्रकार के पदार्थ की बनी होनी चाहिए, जो कि अशुद्धियों को शुद्ध किये जाने वाले तत्त्व की अपेक्षा अधिक प्रबलता से अधिशोषित करने में सक्षम हो। इससे तत्त्व का निर्गमन (elution) सुगमता से हो जाता है।

12. निकिल-शोधन की विधि समझाइए।

उत्तर: निकिल-शोधन का मॉन्ड प्रक्रम (Mond process of nickel purification) – इस प्रक्रम में निकिल (अशुद्ध) को कार्बन मोनोक्साइड के प्रवाह में गर्म करने से वाष्पशील निकिल टेट्रोकार्बोनिल संकुल बन जाता है – इस कार्बोनिल को और अधिक ताप पर गर्म करते हैं जिससे यह विघटित होकर शुद्ध धातु दे देता है।


13. सिलिका युक्त बॉक्साइट अयस्क में से सिलिका को ऐलुमिना से कैसे अलग करते हैं? यदि कोई समीकरण हो तो दीजिए।

उत्तर: शुद्ध ऐलुमिना को बॉक्साइट अयस्क से बायर प्रक्रम द्वारा पृथक्कृत किया जा सकता है। सिलिका युक्त बॉक्साईट अयस्क को \[NaOH\] के सान्द्र विलयन के साथ \[473{\text{ }}--{\text{ }}523{\text{ }}K\] ताप पर तथा \[35{\text{ }}--{\text{ }}36{\text{ }}bar\] दाब पर गर्म करते हैं। इससे ऐलुमिना, सोडियम ऐलुमिनेट के रूप में तथा सिलिका, सोडियम सिलिकेट के रूप में घुल जाता है तथा अशुद्धियाँ अवशेष के रूप में रह जाती हैं। परिणामी विलयन को छानकर अविलेय अशुद्धियों (यदि कोई हो) को हटा दिया जाता है तथा इसे  गैस प्रवाहित करके उदासीन कर दिया जाता है। इस अवस्था पर विलयन को ताजा बने हुए जलयोजित  के नमूने से बीजारोपित किया जाता है जो अवक्षेपण को प्रेरित करता है। सोडियम सिलिकेट विलयन में शेष रह जाता है तथा जलयोजित ऐलुमिना को छानकर, सुखाकर तथा गर्म करके पुनः शुद्ध प्राप्त कर लिया जाता है।

14. उदाहरण देते हुए भर्जन व निस्तापन में अन्तर बताइए। 

उत्तर: निस्तापन में सान्द्रित अयस्क को उसके गलनांक से नीचे वायु की सीमित मात्रा में गर्म किया जाता है। भर्जन में अयस्क को वायु की अधिकता में तीव्रता से गर्म करते हैं। इसके फलस्वरूप \[P,\] \[As,{\text{ }}S\] आदि की अशुद्धियाँ ऑक्सीकृत हो जाती हैं तथा सल्फाइड अयस्क धातु ऑक्साइड में परिवर्तित हो जाता है।

15. ढलवाँ लोही कच्चे लोहे से किस प्रकार भिन्न होता है?

उत्तर: वात्या भट्टी से प्राप्त अशुद्ध आयरन को कच्चा लोहा कहा जाता है। इसमें \[S,{\text{ }}P,{\text{ }}Si,{\text{ }}Mn\] आदि की अशुद्धियों के साथ लगभग \[4\% \]कार्बन होता है। ढलवां लोहे को बनाने के लिए कच्चे लोहे को गर्म वायु में स्क्रैप आयरन तथा कोक के साथ पिघलाया जाता है। इसमें कार्बन की मात्रा कम (लगभग \[3\% )\]पायी जाती है।

16. अयस्कों तथा खनिजों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: प्राकृतिक रूप से उपस्थित रासायनिक पदार्थ, जिनके रूप में धातुएँ अशुद्धियों के साथ भूपर्पटी में उपस्थित होती हैं, खनिज (minerals) कहलाते हैं। वे खनिज, जिनसे धातुओं का निष्कर्षण सरल तथा आर्थिक रूप से लाभदायक हो, अयस्क कहलाते हैं। अतः सभी अयस्क खनिज होते हैं, परन्तु सभी खनिज अयस्क नहीं होते हैं। उदाहरणार्थ– भूपर्पटी में लोहा ऑक्साइडों, कार्बोनेटों तथा सल्फाइडों के रूप में विद्यमान होता है। लोहे के इन खनिजों में से निष्कर्षण के लिए लोहे के ऑक्साइडों को चुना जाता है, इसलिए लोहे के ऑक्साइड, लोहे के अयस्क हैं। इसी प्रकार भूपर्पटी में ऐलुमिनियम दो खनिजों के रूप में पाया जाता है- बॉक्साइट  तथा क्ले । इन दोनों खनिजों में से बॉक्साइट से \[Al\] का निष्कर्षण सरलतापूर्वक तथा आर्थिक रूप से लाभदायक रूप में किया जा सकता है, इसलिए बॉक्साइट ऐलुमिनियम का अयस्क है।

17. कॉपर मैट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तकों में क्यों रखा जाता है?

उत्तर: सिलिका युक्त परिवर्तक (बेसेमर परिवर्तक) में मैट में उपस्थित शेष \[FeS\] को \[FeO\] में ऑक्सीकृत करने के लिए रखा जाता है जो सिलिका के साथ संयोग कर संगलित धातुमल बनाता है। जब सम्पूर्ण लोहे को धातुमल के रूप में पृथक् कर लिया जाता है, तब कुछ  ऑक्सीकरण के फलस्वरूप  बनाता है जो अधिक  के साथ अभिक्रिया करके कॉपर धातु बनाता है। अत: कॉपर मैट को सिलिका की परत चढ़े हुए परिवर्तक में मैट में उपस्थित \[FeS\] को \[FeSi{O_3}\]धातुमल के रूप में हटाने के लिए भी रखा जाता है।

18. ऐलुमिनियम के धातुकर्म में क्रायोलाइट की क्या भूमिका है?

उत्तर: क्रायोलाइट, मिश्रण के संगलन ताप को कम करता है तथा ऐलुमिना की वैद्युत चालकता को बढ़ाता है जो कि वास्तव में विद्युत का अच्छा चालक नहीं होता है।

19. निम्न कोटि के कॉपर अयस्कों के लिए निक्षालन क्रिया को कैसे किया जाता है?

उत्तर: निम्न ग्रेड कॉपर अयस्क का निक्षालन वायु या जीवाणुओं की उपस्थिति में अम्ल के साथ क्रिया कर किया जाता है। इस प्रक्रिया में कॉपर आयनों के रूप में विलयन में चला जाता है।

20. \[{\mathbf{Co}}\] का उपयोग करते हुए अपचयन द्वारा जिंक ऑक्साइड से जिंक का निष्कर्षण क्यों नहीं किया जाता?

उत्तर: एलिंघम चित्र में  वक्र \[Zn,{\text{ }}ZnO\] वक्र के ऊपर स्थित है। यह स्पष्ट करता है कि \[CO\] से बनाने के लिए \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\] का मान \[Zn\] से \[ZnO\] के निर्माण के मान से कम ऋणात्मक है। इसलिए, यदि \[CO\] का अपचायक के रूप में प्रयोग किया जाता है, तो अपचयन में बहुत अधिक ताप की आवश्यकता होगी। यही कारण है कि जिंक को \[CO\]अपचायक के प्रयोग द्वारा \[ZnO\] से निष्कर्षित नहीं किया जाता है।

 21. के विरचन के लिए  का मान  है तथा के लिए  है। क्या  का अपचयन Al से सम्भव है?

उत्तर: हाँ, \[Al\] के द्वारा का अपचयन सम्भव है। इसको निम्न प्रकार समझा जा सकता है –

इस प्रक्रिया में निहित अभिक्रियाएँ निम्न हैं –

समीकरण \[\left( {ii} \right)\]में से \[\left( i \right)\] को घटाने पर

चूँकि संयुक्त रिडॉक्स अभिक्रिया के लिए \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\] का मान ऋणात्मक है, इसलिए प्रक्रिया सम्भाव्य है। अर्थात् \[Al\] के द्वारा का अपचयन सम्भव है।

22. \[C\]  व \[{\mathbf{CO}}\] में से \[{\mathbf{ZnO}}\] के लिए कौन-सा अपचायक अच्छा है?

उत्तर: कार्बन \[{\mathbf{CO}}\]से अधिक अच्छा अपचायक है, इसको अग्र प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है –

एलिंघम चित्र में\[,{\text{ }}C,{\text{ }}CO\]  वक्र \[Zn,{\text{ }}ZnO\] वक्र से \[1120{\text{ }}K\] से अधिक ताप पर नीचे स्थित तथा वक्र \[1323{\text{ }}K\] से अधिक ताप पर नीचे स्थित है। इस प्रकार, \[C\] से \[{\mathbf{CO}}\]के लिए \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\]  का मान तथा के लिए \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\]⁻ के मान क्रमशः \[1120{\text{ }}K\] तथा  \[1323{\text{ }}K\]पर \[C\] से \[ZnO\] के लिए \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\] के मान से कम है जबकि  वक्र \[Zn,{\text{ }}ZnO\] वक्र से \[2273{\text{ }}K\] पर भी ऊपर है। इसलिए \[ZnO\] को \[C\]के द्वारा अपचयित किया जा सकता है परन्तु \[{\mathbf{CO}}\]के द्वारा नहीं। इसलिए \[C\] व \[{\mathbf{CO}}\] में से \[ZnO\] के अपचयन के लिए \[C\] अधिक अच्छा अपचायक है।


23. किसी विशेष स्थिति में अपचायक का चयन ऊष्मागतिकी कारकों पर आधारित है। आप इस कथन से कहाँ तक सहमत हैं? अपने मत के समर्थन में दो उदाहरण दीजिए।

उत्तर: किसी निश्चित धात्विक ऑक्साइड का धात्विक अवस्था में अपचयन करने के लिए उचित अपचायक का चयन करने में ऊष्मागतिकी कारक सहायता करता है। इसे निम्नवत् समझा जा सकता है –


एलिंघम आरेख से यह स्पष्ट होता है कि वे धातुएँ, जिनके लिए उनके ऑक्साइडों के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा अधिक ऋणात्मक होती है, उन धातु ऑक्साइडों को अपचयित कर सकती हैं जिनके लिए उनके सम्बन्धित ऑक्साइडों के निर्माण की मानक मुक्त ऊर्जा कम ऋणात्मक होती है। दूसरे शब्दों में, कोई धातु किसी अन्य धातु के ऑक्साइड को केवल तब अपचयित कर सकती है, जबकि यह एलिंघम आरेख में इस धातु से नीचे स्थित हो। चूंकि संयुक्त रेडॉक्स अभिक्रिया का मानक मुक्त ऊर्जा परिवर्तन ऋणात्मक होगा (जो कि दोनों धातु ऑक्साइडों के \[\Delta f{\text{ }}{G^ - }\]में अन्तर के तुल्य होता है।), अत: \[Al\] तथा \[Zn\] दोनों \[FeO\] को \[Fe\] में अपचयित कर सकते हैं, परन्तु \[Fe\], को \[Al\] में तथा \[ZnO\] को \[Zn\] में अपचयित नहीं कर सकता। इसी प्रकार \[C\], \[ZnO\] को \[Zn\] में अपचयित कर सकता है, परन्तु \[{\mathbf{CO}}\]ऐसा नहीं कर सकता।

24. उस विधि का नाम लिखिए जिसमें क्लोरीन सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त होती है। क्या होगा यदि \[{\mathbf{NaCl}}\] के जलीय विलयन का विद्युत-अपघटन किया जाए?

उत्तर: डाउन की प्रक्रिया में गलित \[{\mathbf{NaCl}}\] l के वैद्युत-अपघटन के फलस्वरूप सह-उत्पाद के रूप में क्लोरीन प्राप्त होती है।

\[NaCl{\text{ }}\left( {fused} \right){\text{ }} \to {\text{ }}N{a^ + }{\text{ }} + {\text{ }}C{l^ - }\]

कैथोड पर : \[N{a^ - } + {\text{ }}{e^ - } \to {\text{ }}Na{\text{ }}\left( s \right)\]

ऐनोड पर : 

जब \[{\mathbf{NaCl}}\] के जलीय विलयन का वैद्युत-अपघटन किया जाता है, तो कैथोड पर  गैस तथा ऐनोड पर  गैस प्राप्त होती हैं। \[NaOH\] का एक जलीय विलयन सह-उत्पाद के रूप में प्राप्त है।

\[NaCl{\text{ }}\left( {aq} \right){\text{ }} \to {\text{ }}N{a^ + }{\text{ }}\left( {aq} \right){\text{ }} + {\text{ }}Cl--{\text{ }}\left( {aq} \right)\]

ऐनोड पर : 

कैथोड पर :

25. ऐलुमिनियम के विद्युत-धातुकर्म में ग्रेफाइट छड़ की क्या भूमिका है?

उत्तर:  इस प्रक्रिया में ऐलुमिना, क्रायोलाईट तथा फ्लुओरस्पार के गलित मिश्रण का विद्युतअपघटन ग्रेफाइट को ऐनोड के रूप में तथा ग्रेफाइट की परत चढ़े हुए आयरन को कैथोड के रूप में प्रयुक्त करके किया जाता है। विद्युत-अपघटन करने पर \[Al\] कैथोड पर मुक्त होती है, जबकि ऐनोड पर \[{\mathbf{CO}}\]तथा मुक्त होती हैं।

कैथोड पर :  (गलित) \[ \to {\text{ }}Al{\text{ }}\left( l \right)\]

ऐनोड पर :  (गलित) \[ \to {\text{ }}CO{\text{ }}\left( g \right){\text{ }} + {\text{ }}2e--\]

(गलित)

यदि किसी अन्य धातु को ग्रेफाइट के स्थान पर प्रयुक्त किया जाता है, तब मुक्त  न केवल इलेक्ट्रोड की धातु को ऑक्सीकृत ही करेगी, बल्कि कैथोड पर मुक्त \[Al\] की कुछ मात्रा को पुनः में परिवर्तित कर देगी। चूँकि ग्रेफाइट अन्य किसी धातु से सस्ता होता है, इसलिए इसे ऐनोड के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। इस प्रकार ऐलुमिनियम के निष्कर्षण में ग्रेफाइट छड़ की भूमिका ऐनोड पर मुक्त  को संरक्षित करना है जिससे यह मुक्त होने वाले \[Al\] की कुछ मात्रा को पुन:  में परिवर्तित न कर दे।


NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles and Processes of Isolation of Elements in Hindi

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FAQs on NCERT Solutions For Class 12 Chemistry Chapter 6 General Principles And Processes Of Isolation Of Elements In Hindi Mediem in Hindi - 2025-26

1. Why is Class 12 Chemistry Chapter 6 listed as 'Haloalkanes and Haloarenes' and not 'General Principles and Processes of Isolation of Elements'?

According to the updated CBSE syllabus for the 2025-26 academic session, the chapter 'General Principles and Processes of Isolation of Elements' has been removed. The new Chapter 6 in the NCERT textbook is 'Haloalkanes and Haloarenes'. Our NCERT Solutions are aligned with this latest curriculum to ensure students study the correct topics for their board exams.

2. Where can I find reliable and step-by-step NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6, Haloalkanes and Haloarenes?

You can find comprehensive and accurate NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6, 'Haloalkanes and Haloarenes,' right here on Vedantu. Our solutions are prepared by subject matter experts and follow the CBSE 2025-26 guidelines, providing a detailed, step-by-step approach to every intext and exercise question to help you understand the correct answering methodology.

3. What is the correct method to solve numerical problems related to optical activity in the Chapter 6 NCERT exercises?

When solving numericals on optical activity from the NCERT textbook, it's crucial to follow a structured method. Our solutions guide you to:

  • First, identify the chiral centre (a carbon atom attached to four different groups).
  • Second, draw the possible enantiomers and diastereomers for the given compound.
  • Third, determine if the compound is optically active, inactive (meso compound), or part of a racemic mixture.
  • Finally, state the reasoning clearly as per the question's requirement. Following these steps ensures you don't miss any marks.

4. How do the NCERT Solutions for Chapter 6 explain the mechanism for SN1 and SN2 reactions?

Our NCERT Solutions explain these mechanisms by breaking them down into clear steps. For an SN1 reaction, the solution will show the two-step process: formation of the carbocation intermediate, followed by the nucleophilic attack. For an SN2 reaction, the solution illustrates the single-step mechanism involving a transition state. Each step is explained to clarify concepts like steric hindrance, carbocation stability, and the role of the solvent, which is essential for solving related textbook questions.

5. Why is it important to follow the step-by-step format provided in NCERT Solutions when solving conversion problems in Haloalkanes and Haloarenes?

Following a step-by-step format for conversion problems is critical for scoring full marks in board exams. This approach demonstrates a clear understanding of the reaction pathway. Our solutions for Chapter 6 help you:

  • Identify the starting reactant and the final product.
  • Determine the necessary intermediate steps and reagents (e.g., using Markovnikov's rule, or applying named reactions like Finkelstein or Swarts reaction).
  • Write down each step of the conversion clearly, showing the transformation. This systematic method avoids errors and showcases your conceptual clarity to the examiner.

6. How can I use Vedantu’s NCERT solutions to answer 'Give Reasons' type questions from Chapter 6?

Our NCERT solutions are structured to help you master 'Give Reasons' questions. For example, when asked why the boiling points of haloalkanes are higher than parent alkanes, the solution will guide you to mention the key concepts: the polarity of the C-X bond and the resulting stronger intermolecular forces (dipole-dipole interactions). By studying these solved examples, you learn to pinpoint the exact scientific reason required for a complete answer.

7. Are all intext and back-of-the-chapter exercise questions for Haloalkanes and Haloarenes covered in these NCERT Solutions?

Yes, our NCERT Solutions for Class 12 Chemistry Chapter 6 provide complete and detailed answers for every single question from both the intext sections and the end-of-chapter exercises. This ensures that you have a comprehensive resource to prepare for your exams without missing any part of the textbook curriculum for the 2025-26 session.

8. How do the provided solutions tackle complex named reactions like the Wurtz-Fittig and Fittig reactions found in the NCERT exercise?

For complex named reactions, our solutions provide more than just the final answer. They typically include:

  • A clear statement of the reaction principle.
  • The general reaction format and a specific example from the textbook.
  • The necessary reagents and reaction conditions (e.g., dry ether).
  • A step-by-step breakdown showing how the reactants form the product. This approach helps in understanding and memorising the reaction for exam purposes.